क्या है हल?..
शुष्क ह्रदय के सागर तट पर
क्यों फैला फेनिल हो मृदु जल
क्यों मन की उत्ताल तरंगों
ने तोड़ी धाराएँ अविरल
क्यों दल द्रव अधरों से वाष्पन
होता रहा सान्द्र भावों का
क्यों प्रतिबिंबित मुखमंडल पर
अंकित होता रहा अमंगल!
क्यों निज जीवन के दर्शन को
समझ सकूँ वो समय न पाया
क्यों भविष्य के बंद पृष्ठ में
होती रही सदा कुछ हल-चल
साक्ष्य मान अग्नि को
विपणन विशावासों का बहुत हुआ था..
पर यथार्थ के दरवाजे पर
तार तार लटका था आंचल...
दिव्य दृष्टि के संकेतों में
खोज खोज कर नए भरोसे
कितनी बार किये अपने ही, मन ने
मुझसे नए नए छल..
आज और कल, कल आयेगा
वर्तमान पीछे जायेगा..
फिर भविष्य हाथों में होगा
जब तक मुझे समझ आयेगा..
प्रश्न कौन से का, क्या है हल?..
EK BINDU MAIN, DHARA TUM SWANS MAIN JEEVAN BHARA TUM. TUM HRIDAY TUM PRAN MERE. YUG ANANTO KI VARA TUM... EK BINDU MAIN.. DHARA TUM..
Wednesday, June 23, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बहुत सुन्दर कविता. गहरे तक स्पर्श कर गई.
ReplyDeleteअफसोस कि इसे बहुत कम लोगों ने पढ़ा