क्षितिज पर देखो धरा ने
गगन को चुम्बन दिया है
पवन हो मदमस्त बहकी
मेघ मन व्याकुल हुआ है
क्षितिज पर देखो धरा ने
गगन को चुम्बन दिया है
एक हलचल है नदी मैं
रश्मियों ने यूँ छुवां है
कुसुम अली से पूछते है
जाग तुझको क्या हुआ है
नयन मलती हर कलि का
सुबह ने स्वागत किया है
क्षितिज पर देखो धरा ने
गगन को चुम्बन दिया है
पंछियों के स्वर सुनहरे
हर्ष स्वागत कर रहे है..
मंदिरों की घंटियों से
मन्त्र झर झर झर रहे है
कूक कोयल की सुनी
और झूमने लगता जिया है
क्षितिज पर देखो धरा ने
गगन को चुम्बन दिया है....................
itna sunder kaise soch lete hain aap!
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