EK BINDU MAIN, DHARA TUM SWANS MAIN JEEVAN BHARA TUM. TUM HRIDAY TUM PRAN MERE. YUG ANANTO KI VARA TUM... EK BINDU MAIN.. DHARA TUM..

Wednesday, May 6, 2009

आग बनते देखिये

आग बनते देखिये

बिखरी हुई चिंगारियों को

विष उगाते देखिये

इन स्नेह सिंचित क्यारियों को...

नगन होते देखिये

नैतिक नियम जो सर ढके थे

पूजते थे सर झुका हम

बाल जो अनुभव पके थे..

देखते है वक्र दृष्टि ले

सभी वय नारियों को

आग बनते देखिये

बिखरी हुई चिंगारियों को...

देखिये इन बन्धनों को

सौम्यता इनमें कहाँ है

बोध है वो भी अधूरा

गम्यता इनमें कहाँ है..

है स्वयं मैं जो निहित

उन चीखती किलकारियों को

आग बनते देखिये

बिखरी हुई चिंगारियों को...

है कहाँ सम्मान इनमें

कौन सा ईमान इनमें

सोचते है क्षण यही एक

है बसे बस प्राण इनमें..

प्रश्न इनके बेधते है ..

माँ ह्रदय सिसकारियों को..

आग बनते देखिये

बिखरी हुई चिंगारियों को..

चाह थी चिंगारियों से

तम जलेगा दूर होगा ..

है छुपा जो अहं जग मैं

ताप से सब चूर होगा..

स्तब्ध होकर तक रहा हूँ

राख इन फुलवारियों को ..

आग बनते देखिये

बिखरी हुई चिंगारियों को..

समर्पण

समर्पण ओढे

किनारे पर मैं करती रही इन्तेजार!

तुम भी आते रहे

जब जी किया,

मुझे भीगाते रहे,

और फिर

बेपरवाह , बेफिक्र जाते रहे …..

बार- बार मुझे सुखाता रहा

मेरा ही दर्प,

मैं फिसलती गयी

सुनहरे समय की मुठ्ठियों से

और देखो!

कैसे बिखर गया है

तुम्हारे अथाह किनारों पर

मेरा कण कण

रेत बनकर.....

जा रहे हो कोन पथ पर

सरल जीवन, यूँ उकेरे
अतुल मन संदेह घेरे
अश्व तृष्णा,समय रथ पर
जा रहे हो कोन पथ पर
द्रवित है दिनमान प्यारे
श्रंखला बन मेघ तारे
विहग खग बैचैन से है
व्यग्र अली गुंजान सारे
मलिनता का लेप सत् पर
जा रहे हो कोन पथ पर
दृष्टियों मैं गरल आया
वाक्य ले सब प्रबल माया
वचन, दृढ संकल्प, कैसा
शब्द ओढे एक छाया
है कोई अब एक व्रत पर ??
जा रहे हो कोन पथ पर
ह्रदय के ये चक्षु खोलो
सत्य ही बस सत्य बोलो
मन भ्रमित, आश्वस्त करके
स्वयं के ही साथ हो लो
वर्ष बीते , व्यर्थ अवसर
जा रहे हो कोन पथ पर...

रजनी.....

काले केशो सा तम विभोर

तुम छुपा ह्रदय मैं नयी भोर

चंदा, संध्या, साजन , सजनी

तुझमें विश्राम करे रजनी……..

नित सुबह स्पन्दन मुखर मुखर

किरने लाती प्रकाश भर भर

तेरा तम ही तो जीवन है उनका जो जीते हो जलकर

आभास नए सुख का देती

अंतर मैं जैसे पीर घनी…..

तुझमें विश्राम करें रजनी..

तेरा चिर परिचित कृष्ण वर्ण

जिसमें कुछ और नहीं रचता

तुझमें मिटने का साहस है

तुझको कुछ और नहीं जंचता

तेरे तम से खुद को धोकर

तुझसे सजकर सूरज उगता

दिन जीवन देकर अमर किया

और खुद अंधियारी रात बनी

तेरा विश्राम कहाँ रजनी.....

तू प्रेरक, पावक, सौम्य, शांत
फिर भी सदियाँ क्यूँ खड़ी भ्रांत??

जग तुझमें पता चिर विराम

हारे, जीते, सब विकल, क्लांत

ये समय समर्पण मौन मौन

निस्वार्थ भावः से पूर्ण धनी

तुझमें विश्राम करे रजनी.....

अल्लाह का मंदिर

राम तुम आना ,

आओगे तो

साथ मैं खुदा को लेकर पश्चिम से आना

सुना है ईशु वहां रहते है

कभी कभी एक गरीब के घरों को तोड़ते बम कहते है ,

तुम आना बर्मा होते हुए

बुद्धा को साथ ले आना

वो सडको पर कहीं पड़े मिल जायेंगे

तुम आओगे तो वाहे गुरु , जरूर आएंगे

वरना वो आना नहीं चाहते है

क्यूंकि लोग उनको सचमुच बुलाना नहीं चाहते है

अगर आ जाओ तो , अयोध्या मत जाना

वहां लोग तुम्हारा ,व्यापर करते है

हिन्दू मुस्लिम सभी सरयू से खून भरते है

जब आना तो कश्मीर जाना

जहाँ एक गरीब माँ का पूरा खानदान कब्र मैं दबा है

वो आप सब से बहुत खफा है

उसको मुस्कुराहट देने का

एक काम अदद करना

उसके दिल मैं एक मंदिर बनाने मैं

अल्लाह की मदद करना .....